किसका बाट जोहती है तू
नैया री!
जिनको
तूने पार उतारा
कोई
तेरा हुआ सहारा
सबने
दाम दिये नाविक को
तुझे
पैर से धक्का मारा
सब
चुप चाप सहा करती है
कभी
न कहती दैया री
केवट
ने सुख लूटा सारा
स्वयं
तरा पुरखों को तारा
प्रभु
तेरी गोदी में बैठे
धन्यवाद
क्या किया तुम्हारा
तुझे
मुसाफ़िर भी ठगते है
ठगता
रोज़ खिवैया री
लहरों
की ठोकर सहती है
घावों
से रिसती रहती है
सबको
पार लगा देने को
गर्दन
तक डूबी बहती है
तूने
डगमग किया तनिक तो
याद
आ गई मैया री
सब
तेरे ऊपर तिरते हैं
मरने
से कितना डरते हैं
वैतरणी
में डूब न जायें
सो
गोदान किया करते हैं
तू
जो निश-दिन पार उतारे
कभी
न कहते गैया री
किसका
बाट जोहती है तू
नैया
री!
- अमित