Wednesday, January 27, 2016

नवगीत - माँ तुम अपने साथ ले गयी मेरा बचपन भी।

माँ तुम अपने साथ ले गयी
मेरा बचपन भी।

जब तक थीं तुम
मुझमें मेरा
शिशु भी जीवित था
वात्सल्य से सिंचित
मन का
बिरवा पुष्पित था
रंग-गंघ से हीन हो गए
रोली-चन्दन भी।


झिड़की, डांट-डपट
भी तुम थी
तुम थी रोषमयी
सहज स्नेह सलिला
भी तुम थी
तुम थी तोषमयी
सुधियाँ दुहराती हैं खट्टी-
मीठी अनबन भी।


मुझे कष्ट में देख
स्वयं का
दुःख तुम भूल गयी
कितने देवालय पूजे
घंटो पर
झूल गयी
रोम-रोम ऋण से सिंचित है
उपकृत जीवन भी।


-अमित

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

अद्भुत ममतामयी पंक्तियाँ।