Sunday, March 22, 2009

ग़ज़ल - जिन्दगी इक तलाश है, क्या है?

जिन्दगी इक तलाश है, क्या है?
दर्द इसका लिबास है क्या है?


फिर हवा ज़हर पी के आई क्या,
सारा आलम उदास है, क्या है?

एक सच के हजार चेहरें हैं,
अपना-अपना क़यास है, क्या है

जबकि दिल ही मुकाम है रब का,
इक जमीं फिर भी ख़ास है, क्या है

राम-ओ-रहमान की हिफ़ाजत में,
आदमी! बदहवास है, क्या है?

सुधर तो सकती है दुनियाँ, लेकिन
हाल, माज़ी का दास है, क्या है

मिटा रहा है जमाना इसे जाने कब से,
इक बला है कि प्यास है, क्या है?

गौर करता हूँ तो आती है हँसी,
ये जो सब आस पास है क्या है?
-अमित

3 comments:

Prateek Pathak"Aakash" said...

हर शख्स को देखिये,गुम है ग़मज़दा है,
इशारे ही करना मुनासिब,फासला बंधा है.....

it was wonderful to read all ur poems,doha and thoughts.
I was not sure,how I should response to ur whole blog.

-Prateek Pathak

Paise Ka Gyan said...

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