दर्द ऐसा, बयाँ नहीं होता
जल रहा हूँ, धुआँ नहीं होता
अपने अख़्लाक़ सलामत रखिये
वैसे झगड़ा कहाँ नहीं होता
आसमानों से दोस्ती कर लो
फिर कोई आशियाँ नहीं होता
इश्क़ का दौर हम पे दौराँ था
ख़ुद को लेकिन ग़ुमाँ नहीं होता
कोई सब कुछ भुला दे मेरे लिये
ये तसव्वुर जवाँ नहीं होता
जब तलक वो क़रीब रहता है
कोई शिकवा ज़ुबाँ नहीं होता
पाँव से जब ज़मीं खिसकती है
हाथ में आसमाँ नहीं होता
-अमित
2 comments:
गहरा सच..सुन्दर शब्द।
बहुत सुन्दर
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