ये रवायत आम है क्यों मुँह छिपाया कीजिये।
सीधे रस्ते बन्द हैं पीछे से आया कीजिये।
यूँ यकीं करता नहीं कोई उमूमन आपका
फिर भी बहरेशौक़ कुछ वादे निभाया कीजिये।
इतने भोले भी न बनिये, कि लोग शक़ करने लगें,
आदतन गाहेबगाहे ग़ुल खिलाया कीजिये।
हैं बहुत अल्फाज़ भारी आपकी तक़रीर के,
वक़्त कम है मोहतरिम मतलब बताया कीजिये।
आपके अन्दाज़ की शोखी़ नजर का बाँकपन
और भी बढ़ जायेगा गर मुस्कराया कीजिये।
रुठना अच्छा है जब तक लोग संजीदा न हों
और मौका देखते ही मान जाया कीजिये।
हैं बहुत मजमून सुनने के सुनाने के ’अमित’
शर्त इतनी है कि बस तशरीफ लाया कीजिये।
- अमित
सामुदायिक बिस्तर (कम्युनिटी बेड)
13 years ago
3 comments:
वाह अमित भाई वाह! शानदार ग़ज़ल मुझे बहुत आनन्द आया।
रुठना अच्छा है जब तक लोग संजीदा न हों
और मौका देखते ही मान जाया कीजिये।
बहुत खूब ! अच्छी रचना के लिए आपको मेरी तरफ से ढेरों बधाई!
क्या बात है भाई.
यूँ यकीं करता नहीं कोई उमूमन आपका
फिर भी बहरेशौक़ कुछ वादे निभाया कीजिये।
बहुत खूब. उम्दा शेर कहे हैं. बधाई.
Wonderful "ये रवायत आम है"...! I'd like to go through more of your poetry, Amit...! :)
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