भय कहीं विश्राम लेने जा रहा है
भोर का तारा नज़र बस आ रहा है
और अब पहली किरन मुस्का रही है
रात देखो जा रही है।
फड़फड़ाये पंख पीपल के
कि पत्ते पक्षियों के
झुण्ड वापस जा रहे हैं
नगर के उपरक्षियों के
ठण्ड से सिकुड़ी हवा
मानो पुनः गति पा रही है।
रात देखो जा रही है।
मौन था अभिसार फिर भी
मुखर है अभिव्यक्ति उसकी
जागरण के चिह्न आँखों में
लटें हैं मुक्त जिसकी
भींचती रसबिम्ब
आँगन पार करती आ रही है।
रात देखो जा रही है।
यंत्र-चालित से उठे हैं हाथ
यह क्या? पार्श्व खाली
कहा दर्पण ने मिटा लो
वक्त्र से सिन्दूर, लाली
रात्रि के मधुपान की
स्मृति हृदय सहला रही है।
रात देखो जा रही है।
फिर उड़ेला चिमनियों ने
ज़हर सा वातावरण में
हुआ कोलाहल चतुर्दिक
उठो, भागो चलो रण में
स्वप्न-समिधा ,
जीविका की वेदिका सुलगा रही है।
रात देखो जा रही है।
- अमित
सामुदायिक बिस्तर (कम्युनिटी बेड)
13 years ago
6 comments:
फिर उड़ेला चिमनियों ने
ज़हर सा वातावरण में
हुआ कोलाहल चतुर्दिक
उठो, भागो चलो रण में
स्वप्न-समिधा ,
जीविका की वेदिका सुलगा रही है।
रात देखो जा रही है।
waah! bahut hi achchee kavita likhi hai aap ne.
raat ke jaane ka bhor ke aane ka sundar vivran..antim panktiyon mein फिर उड़ेला चिमनियों ने
ज़हर सा वातावरण में'
vastvikta se jodta hua.
सुन्दर रचना-उम्दा अभिव्यक्ति!!
खूबसूरत भाव एवं अभिव्यक्ति। वाह।
दिन भी होंगे रात होगी जिन्दगी बढ़ती रहेगी।
रात के जाने का गम क्या जिन्दगी भी जा रही है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
Ratree ke madhupaan ki ,
Smariti hirdaya sahalaa rahee hai....
Ratree ke jane aur subah ke aaane ka manohaaree varnan paya hai is kavita mein ....ati sunder bhaav...
Itne sunder varnan ke liye aapko badhai....
उठ,भागो चलो रण मे
स्वप्न-समिधा,
जीविका की वैदिका सुलगा रहि है।
अमित जी, जीविका कि वैदिक मे कितने कौमल
सपने भस्म होते है.....सच तब मन भी चिमनी बन कसेला धुँआ उगलने लगता है खैर.......
सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई!
vaah bhaayi vaah.........bada sundar likh diyaa aapne........!!
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