लिहाफ़ों की सिलाई खोलता है
कोई दीवाना है सच बोलता है।
बेचता है सड़क पर बाँसुरी जो
हवा में कुछ तराने घोलता है।
वो ख़ुद निकला नहीं तपती सड़क पर
पेट पाँवों पे चढ़ कर डोलता है।
पेश आना अदब से पास उसके
वो बन्दों को नज़र से तोलता है।
याद रह जाय गर कोई सुखन तो
उसमें सचमुच कोई अनमोलता है।
-- अमित
सामुदायिक बिस्तर (कम्युनिटी बेड)
13 years ago
3 comments:
बहुत सुन्दर भाव!
याद रह जाय गर कोई सुखन तो
उसमें सचमुच कोई अनमोलता है।
सच्चा सुखन तो अनमोल होता ही है।
nice feelings as well as presentation......
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