Thursday, December 10, 2009

ग़ज़ल - लिहाफ़ों की सिलाई खोलता है

लिहाफ़ों की सिलाई खोलता है
कोई दीवाना है सच बोलता है।

बेचता है सड़क पर बाँसुरी जो
हवा में कुछ तराने घोलता है।

वो ख़ुद निकला नहीं तपती सड़क पर
पेट पाँवों पे चढ़ कर डोलता है।

पेश आना अदब से पास उसके
वो बन्दों को नज़र से तोलता है।

याद रह जाय गर कोई सुखन तो
उसमें सचमुच कोई अनमोलता है।


-- अमित

3 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर भाव!

Rajeysha said...

याद रह जाय गर कोई सुखन तो
उसमें सचमुच कोई अनमोलता है।

सच्‍चा सुखन तो अनमोल होता ही है।

Rajesh Mishra said...

nice feelings as well as presentation......