Wednesday, April 27, 2011

नवगीत - बस इतना सा समाचार है।

 
जितना अधिक पचाया जिसने
उतनी ही छोटी डकार है
बस इतना सा समाचार है

निर्धन देश धनी रखवाले
भाई चाचा बीवी साले
सबने मिलकर डाके डाले
शेष बचा सो राम हवाले
फिर भी साँस ले रहा अब तक
कोई दैवी चमत्कार है
बस इतना सा समाचार है

चादर कितनी फटी पुरानी
पैबन्दों में खींचा-तानी
लाठी की चलती मनमानी
हैं तटस्थ सब ज्ञानी-ध्यानी
जितना ऊँचा घूर, दूर तक
उतनी मुर्ग़े की पुकार है
बस इतना सा समाचार है

पढ़े लिखे सब फेल हो गये
कोल्हू के से बैल हो गये
चमचा, मक्खन तेल हो गये
समीकरण बेमेल हो गये
तिकड़म की कमन्द पर चढ़कर
सिद्ध-जुआरी किला-पार है
बस इतना सा समाचार है

जन्तर-मन्तर टोटका टोना
बाँधा घर का कोना-कोना
सोने के बिस्तर पर सोना
जेल-कचेहरी से क्या होना
करे अदालत जब तक निर्णय
धन-कुनबा सब सिन्धु-पार है
बस इतना सा समाचार है

मन को ढाढस लाख बधाऊँ
चमकीले सपने दिखलाऊँ
परी देश की कथा सुनाऊँ
घिसी वीर-गाथायें गाऊँ
किस खम्भे पर करूँ भरोसा
सब पर दीमक की कतार है
बस इतना सा समाचार है

-- अमित


Wednesday, April 13, 2011

मेरे मित्र, मेरे एकांत


मेरे मित्र मेरे एकान्त
सस्मित और शान्त
कितने सदय हो
सुनते हो मन की
टोका नहीं कभी
रोका भी नहीं कभी
तुम्हारे साथ जो पल बीते
सम्बल है उनका
हम रहे जीते

मेरे मित्र
मेरे एकान्त
आज बहुत थका सा
लौटा हूँ भ्रमण से
पदचाप सुनता हूँ
कल्पित विश्रान्ति का
या अपनी भ्रान्ति का

मेरे मित्र
मेरे एकान्त
जानते  हो! 
केवल एक तुम ही
मेरे एकालाप को
सुनते हो बिन-उकताये
इसीलिये बार-बार
दुनिया से हार-हार
शरण में आता हूँ

मेरे प्रिय सुहृद
मेरे एकान्त
क्या तुम मुझे नहीं रख सकते
सदैव अपने अंक में
कोलाहल से दूर
जहाँ मैं सो लूँ
एक नींद
जो फिर न खुले
 
--अमित