Friday, March 14, 2014

गुरु-वन्दना




गुरु तुम सम न कोई उपकारी
द्वार तुम्हारे आकर पाई
मैंनें सम्पति सारी
गुरु तुम बिन न कोई उपकारी

बुद्दि-विवेक विहीन फिरा मैं
तृष्णा से सब ओर घिरा मैं
हे करुणामय! तृप्त हुआ मैं
पाकर कृपा तुम्हारी
गुरु तुम बिन न कोई उपकारी

घोर निशा में दिशाहीन से
जल से बिछुड़ी हुई मीन से
भय-व्याकुल मन को चरणों की
धूलि हुई भयहारी
गुरु तुम बिन न कोई उपकारी

जब हो आर्त्त पुकारा मैंनें
पाया सदा सहारा मैंनें
श्रेय दिया प्रभु तुमनें मुझको
प्रेय दिया हितकारी
गुरु तुम बिन न कोई उपकारी

-अमित