Monday, August 4, 2014

नवगीत - मित्रो आज टमाटर खाया।


मित्रो! आज टमाटर खाया
भावातीत परमसुख पाया

बीस रूपये किलो बिक रहा
थी दुकान पर मारा-मारी
दैहिक, वाचिक संघर्षों के
बाद लगी मेरी भी बारी
एक शतक का नोट बढ़ाकर
झोले का श्रीमुख फैलाया

"बीस रूपये खुल्ले देना
एक किलो आडर सरकारी"
टूट गया झोले का भी मन
चेहरे पर छाई लाचारी
बटुआ, झोला, वस्त्र बचाते
एक किलो ले बाहर आया

हुआ मुहल्ले में जब दाखिल
दस गज सीना फुला हुआ था
चार इंच मुस्कान सजी थी
मुख गुलाब सा खिला हुआ था
बढ़ा-चढ़ा कर शौर्य-कथा को
घर पर अपना रोब जमाया

चटनी बनी, सलाद कट गया
सिद्ध टमाटर से तरकारी
चटकारे ले जीम रहा था
इन सबको मैं बारी-बारी
परमतृप्ति के इन्हीं क्षणों में
कानों से कटु स्वर टकराया

उठ भी जाओ! 
दिन चढ़ आया।

मित्रो! ख़ूब टमाटर खाया!

-अमित

Friday, March 14, 2014

गुरु-वन्दना




गुरु तुम सम न कोई उपकारी
द्वार तुम्हारे आकर पाई
मैंनें सम्पति सारी
गुरु तुम बिन न कोई उपकारी

बुद्दि-विवेक विहीन फिरा मैं
तृष्णा से सब ओर घिरा मैं
हे करुणामय! तृप्त हुआ मैं
पाकर कृपा तुम्हारी
गुरु तुम बिन न कोई उपकारी

घोर निशा में दिशाहीन से
जल से बिछुड़ी हुई मीन से
भय-व्याकुल मन को चरणों की
धूलि हुई भयहारी
गुरु तुम बिन न कोई उपकारी

जब हो आर्त्त पुकारा मैंनें
पाया सदा सहारा मैंनें
श्रेय दिया प्रभु तुमनें मुझको
प्रेय दिया हितकारी
गुरु तुम बिन न कोई उपकारी

-अमित