Monday, October 7, 2013

नवगीत - कहते रहो कहानी बीर



कहते रहो कहानी बीर
अपनी आँधी-पानी बीर
तुम पहरे पर खड़े रहे
डूब गई रजधानी बीर

सारे चारण और कहार
बोल रहे हैं जै जै कार
महरानी ने ठोंकी पीठ
डटे रहे तुम राज कुमार
हैं दीवान सयाने जी
परखे और पहचाने जी
लेकिन इनकी उमर हुई
अब ख़ुद लो निगरानी बीर

सवा अरब से ज़्यादा भाल
इन्द्रप्रस्थ में किन्तु अकाल
गुदड़ी ही गुदड़ी निकली
स्याह पड़ गये सारे लाल
सबकी मिलीभगत लगती
अन्दर ही खिचड़ी पकती
दिखलाने को जनता में
नूरा कुश्ती ठानी बीर

जैसे ऊँट सवारी बीर
है खेती सरकारी बीर
नीलगाय ने कल चर ली
अब टिड्डों की बारी बीर
चाहे देश हुआ कंगाल
देशी-सेवक मालामाल
गन्ने पर कब्ज़ा जिसका
उसकी ही गुड़धानी बीर

-अमित