Friday, September 12, 2008

समझौता

दोनों में तय हुआ मैं तुम्हारी तारीफ करूँगा तुम मेरी करना। लेकिन समझौता एक ही हफ्ते में टूट गया क्योंकि अगला बराबर तरीफ कराने में चूक गया। अब दोनों , एक - दूसर को, नंगा करने में व्यस्त हैं। और बाकी साथी, तीन चार पॉँच और छः मस्त हैं। -अमित

Tuesday, September 9, 2008

विष्फोटक रसायन

धर्म यानि मजहब
एक विष्फोटक रसायन
अति संवेदनशील , जरा सी हुई ढील
और दग गया।
फ़ैल गया बारूद , शहर में गाँव में
बागों की छाँव में
गली में फुटपाथ पर
जाने किस बात पर
न कोई डिटोनेटर , न कोई चिंगारी ,
बस किसी के दिमाग की खुजली
पड़ गई सब पर भारी ,
बिगडैल बच्चा कोई ,
ध्यान सबका खींचने को ,
पटक देता हाथ में पकड़ा खिलौना ,
रोता और चिल्लाता ,
पूंछने पर , किसी की ओर करके इशारा
आरोपित करता ज्यों उसने ही तोडा हो।
लोग सत्य जान कर भी ,
मान लेते बात बच्चे की ,
कि उसका चिल्लाना बंद हो।
एक चपत हलकी सी ,
सचमुच या झूठी सी ,
लगा दी आरोपी को ,
बालक संतुष्ट हुआ।
यही बच्चा बढ़ते - बढ़ते ,
बढ़ गया।
धर्म पर सीधी लगा कर,
चढ़ गया।
अज भी वह ट्रिक है उसके साथ ,
और लंबे आज उसके हाथ।
वह कहीं आचार्य धर्मों का ,
कहीं नेता ,कहीं आलिम ,
कहीं तालिब , कहीं मुंसिफ ,
कहीं वह शीर्ष सत्ता का।
वह खड़ा है जिस ऊंचाई पर ,
कि उसका एक इशारा ,
कुन्तलों बारूद को शोला बना दे ,
वो जब चाहे शहर को शहर रहने दे ,
जब चाहे श्मशान बना दे।




Thursday, September 4, 2008

ग़ज़ल - मत मंसूबे बाँध बटोही, सफर बड़ा बेढंगा है।

मत मंसूबे बाँध बटोही, सफर बड़ा बेढंगा है।
जिससे मदद मांगता है तू, वह ख़ुद ही भिखमंगा है।

ऊपर फर्राटा भरती हैं, मोटर कारें नई - नई,
पुल के नीचे रहता, पूरा कुनबा भूखा नंगा है.

नुक्कड़ के जिस चबूतरे पर, भीख मांगती है चुनिया,
राष्ट्र पर्व पर वहीं फहरता, विजई विश्व तिरंगा है.

कला और तहजीबों वाले, अफसानें, बेमानी हैं ,
शहरों की पहचान, वहां पर होनें वाला दंगा है।

मुजरिम भी सरकारी निकले, पुलिस खैर सरकारी थी,
अन्धा तो फिर भी अच्छा था, अब कानून लफंगा है।

शहर समझता उसके सारे पाप, स्वयं धुल जायेंगे
एक किनारे बहती जमुना, एक किनारे गंगा है.

अमित यहाँ कुछ लोग चाहते, पैदा होना सौ-सौ बार
जहाँ फरिस्ते भी डरते हों, मूर्ख वहां पर चंगा है।