Sunday, April 12, 2009

ग़ज़ल - उम्र भर का ये कारोबार रहा।

उम्र भर का ये कारोबार रहा।
इक इशारे का इन्तेजार रहा।

जान आख़िर को किस तरह बचती
जो था क़ातिल वही क़रार रहा।

उसने वादा नहीं किया फिर भी
उसकी सूरत पे ऐतिबार रहा।

जितने सच बोलने पड़े मुझको
उतने झूँठों का कर्जदार रहा।

मुझको मौका नहीं मिला कोई
मैं यक़ीनन ईमानदार रहा।

जिसका ख़ंजर तुम्हारी पीठ में है
अब तलक वो तुम्हारा यार रहा।

फ़ैसला क़त्ल का दो टूक हुआ
ख़ुद ही मक़्तूल जिम्मेदार रहा।

सोच लेना गु़रूर से पहले
वक़्त पर किसका इख़्तियार रहा।

जब्त से काम लिया फिर भीअमित
चेहरा कमबख़्त इश्तेहार रहा।
- अमित

9 comments:

"अर्श" said...

WAAH BAHOT KHUB KAHI AAPNE YE GAZAL..BADHAAYEE...



ARSH

Prakash Badal said...

बहुत खूब। लिखते रहें।

श्यामल सुमन said...

सोच लेना गु़रूर से पहले
वक़्त पर किसका इख़्तियार रहा।

बहुत खूब। कहते हैं कि-

वह पेड़ जो तन के खड़ा था जड़ से उखड़ गया।
वाकिफ नहीं था वो भी हवा के मिजाज से।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Administrator said...

Achha hai!


Hindibooksonline.blogspot.com

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत उम्दा गज़ल है।बधाई स्वीकारें।

रज़िया "राज़" said...

फिर क्यूँ मैं तुझे साथ लिए फिरता हूँ,
बड़े नादान थे हम, रूहें बदल डाली थीं,
अब जो आओ तो मेरी रूह लौटाकर जाना..!!
सुंदर गज़ल के लिये बधाई।

Unknown said...

अच्छी ब्लॉग हे / आप कौनसी टाइपिंग टूल यूज़ करते हे ? रीसेंट्ली मेने यूज़र फ्रेंड्ली इंडियन टाइपिंग टूल केलिए सर्च कर्राहा ता, तो मुजे मिला " क्विलपॅड " / आप भी "क्विलपॅड " www.quillpad.in यूज़ करते हे क्या...?

Anonymous said...

जितने सच बोलने पड़े मुझको
उतने झूँठों का कर्जदार रहा।

Anonymous said...

मुझको मौका नहीं मिला कोई
मैं यक़ीनन ईमानदार रहा।
This is true for a lot of so called honest people.
Hamne kahie rishwat lee nahin
kyonki kisi ne kabhi dee nahin.

On the dot.