Tuesday, June 2, 2009

ग़ज़ल - जो कुछ हो सुनाना उसे बेशक़ सुनाइये


जो कुछ हो सुनाना उसे बेशक़ सुनाइये
तकरीर ही करनी हो कहीं और जाइये

याँ महफ़िले-सुखन को सुखनवर की है तलाश
गर शौक आपको भी है तशरीफ़ लाइये।

फूलों की जिन्दगी तो फ़क़त चार दिन की है
काँटे चलेंगे साथ इन्हे आजमाइये।

क‍उओं की गवाही पे हुई हंस को फाँसी
जम्हूरियत है मुल्क में ताली बजाइये।

रुतबे को उनके देख के कुछ सीखिये 'अमित'
सच का रिवाज ख़त्म है अब मान जाइये।

-- अमित

2 comments:

श्यामल सुमन said...

क‍उओं की गवाही पे हुई हंस को फाँसी
जम्हूरियत है मुल्क में ताली बजाइये।

अच्छी रचना। कहते हैं कि-

मजबूरियाँ जम्हूरियत की देखो।
ताज एक कातिल के सर पे रख दिया।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Poonam Agrawal said...

foolon ki jindagi to fakat char din ki hai....kante chalenge saath inhe aajmaiye....behad khoobsoorat .....full of positivity
....jin kanto se sab daaman bachaker nikalte hai.... unhe aajmaiye....VAAH....