Wednesday, November 11, 2009

कुछ सामयिक दोहे

युद्ध रोकने के लिये, युद्ध हुआ अनिवार्य।
वीर भोगते हैं धरा, क्यों सोये हो  आर्य॥

जन की, धन की, देश की, करे सुरक्षा कौन।
निर्णायक  संवाद में, रह  जाते  हो मौन॥

विषधर को शोभे क्षमा, कवि कह गया प्रवीन।
दन्तहीन, विषहीन  पर, शासन  करती बीन॥

जब अपना  घर हो  भरा, सब देते  सहयोग।
मरुथल प्यासा ही रहे, जलनिधि को जलयोग॥


प्रभाष जोशी जी के निधन पर

निविड़ कालिमा छा गयी, ज्यों भादौं की रात।
सुख का घट रीता हुआ, दुख की भरी  परात॥


अमित


Mob:

3 comments:

दिगम्बर नासवा said...

जन की, धन की, देश की, करे सुरक्षा कौन
निर्णायक संवाद में, रह जाते हो मौन...

SACH KAHA .... SATEEK AAJ KE HAALAAT PAR KI GAYEE SATEEK TIPPANI .... SAMAY PAR IS DESH KI JANTA BHI MOUN HO JAATI HAI ... PATA NAHI KYON ...

निर्मला कपिला said...

सभी दोहे एक से बढ कर एक हैं लाजवाब प्रस्तुति बधाई

शोभित जैन said...

बहुत खूब अमिताभ जी ...
आप नित्य नयी बुलंदियों को छुते रहें यही हमारी शुभकामनायें हैं