दिल न होने से तो पत्थर का भी दिल अच्छा है
नाला-ए-हक़ पे किसी रोज़ धड़क सकता है
पौध शोलों की लगाने से पेशतर सोचो
कभी ये अपने भी दामन में भड़क सकता है
अमित
नाला-ए-हक़ = सत्य की चीत्कार
सामुदायिक बिस्तर (कम्युनिटी बेड)
13 years ago
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