Tuesday, July 26, 2011

गीत - हाँ! ऐसा भी हो सकता है




एक बूँद गहरा पानी भी
सौ जलयान डुबो सकता है
हाँ! ऐसा भी हो सकता है

पीड़ा की अनछुई तरंगे
जब मानस-तट से टकरातीं
कुछ फेनिल टीसें बिखराकर
आस-रेणु भी संग ले जातीं
इस तरंग-क्रीड़ा से मन को
बहला तो लेता हूँ फिर भी
धैर्य-पयोनिधि का इक आँसू
सौ बड़वानल बो सकता है
हाँ! ऐसा भी हो सकता है

तथाकथित प्रेमों में उलझी
देखीं देह-कथायें कितनी
क्षण-उत्साही त्वरित वेग की
चमकीली उल्कायें कितनी
पोर-पोर रससिक्त दिखा है
किन्तु कलश रीता है फिर भी
सत्य-स्नेह का दावानल तो 
चित्ताकाश बिलो सकता है
हाँ! ऐसा भी हो सकता है

लक्ष्य, अलक्ष्य रहा जीवन भर
थकित पाँव, पड़ गये फफोले
प्रत्याशा में हमने कितने
सुविज्ञात संबन्ध टटोले
मेघाच्छन्न अमा-रजनी में
किंचित शब्द दिखा दें रस्ता
किन्तु दिवस के कोलाहल में
राही प्रायः खो सकता है
हाँ! ऐसा भी हो सकता है

अमित
शब्दार्थ:
धैर्य-पयोनिधि - धीरज का समुद्र, बड़वानल - समुद्र में लगने वाली आग या ताप, दावानल - जंगल की आग, चित्ताकाश - चित्त का आकाश, बिलो - बिलोना - मथना, मेधाच्छन्न - बादलों से भरी हुई, अमा-रजनी - अमावस्या की रात, अलक्ष्य - अप्रकट या अदृष्य।


3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर कृति।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय अमिताभ त्रिपाठी 'अमित' जी
सादर अभिवादन !

पीड़ा की अनछुई तरंगे
जब मानस-तट से टकरातीं
कुछ फेनिल टीसें बिखराकर
आस-रेणु भी संग ले जातीं
इस तरंग-क्रीड़ा से मन को बहला तो लेता हूँ फिर भी
धैर्य-पयोनिधि का इक आँसू
सौ बड़वानल बो सकता है
हाँ! ऐसा भी हो सकता है



प्रशंसा की परिधि से बहुत आगे है आपका गीत

पर्याप्त शब्द नहीं हैं मेरे पास … बस , शब्द-शिल्प-भाव के आनन्द में डूबा हुआ अर्द्धरात्रि वेला में गुनगुना रहा हूं … … …

हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

-राजेन्द्र स्वर्णकार

पारुल "पुखराज" said...

धैर्य-पयोनिधि का इक आँसू
सौ बड़वानल बो सकता है
हाँ! ऐसा भी हो सकता है

बहुत सुन्दर गीत, अमित जी
आपकी रचनाएं कई -कई दिन तक मन में गूँजती हैं

सादर