इन्ही मेंघों से निकलकर
चंचला की श्रृंखलायें
सुपथ आलोकित करेंगी
इन्हीं मेघों से झरेंगी
सुधा की रसमयी बूँदे
पुनः नवजीवन भरेंगी
इन्हीं मेघों से फिसलकर
रश्मियाँ नक्षत्रपति की
इन्द्रधनु मोहक रचेंगी
इन्ही मेंघों से हुआ प्रेरित
पवन, सन्देश देगा
नेह की नदियाँ बहेंगी
इन्हीं मेघों से धुलेंगे
सभी कच्चे रंग, पक्के
रंग की निधियाँ बचेंगी
इन्हीं मेघों से हुआ
भयभीत क्यों मन
अरे! ऋतु के चक्र का है
यही सावन
छँटेंगे जब मेघ
होगी पूर्णिमा
फिर से शरद की।
-अमित
चित्र: १ एवं ३ स्वयं तथा २ एवं ४ गूगल से साभार।
1 comment:
मेघों, तुम बरसों निर्विकार,
धरती प्यासी है, शत प्रकार।
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