कुछ भूलें ऐसी जिनकी चर्चा बेमानी लगती है।
कुछ भू्लों के लिये शर्म भी आई हमको कभी-कभी,
कुछ भूलों की पृष्ठभूमि बिल्कुल शैतानी लगती है।
कुछ भूलों की विभीषिका से जीवन है अब तक संतप्त,
कुछ भूलों की सृष्टि विधाता की मनमानी लगती है।
कुछ भूलें चुपके से आकर चली गईं तब पता चला,
कुछ भूलों की आहट भी जानी पहचानी लगती है।
कुछ भूलों में आकर्षण था, कुछ भूलें कौतूहल थीं,
कुछ भूलों की दुनियाँ तो अब भी रुमानी लगती है।
कुछ भूलों का पछतावा है, कुछ में मेरा दोष नहीं,
कुछ भूलें क्यों हुईं, आज यह अकथ कहानी लगती है।
6 comments:
कुछ भूलें ऐसी हैं, जिनकी याद सुहानी लगती है।
कुछ भूलें ऐसी जिनकी चर्चा बेमानी लगती है।
कुछ भू्लों के लिये शर्म भी आई हमको कभी-कभी,
कुछ भूलों की पृष्ठभूमि बिल्कुल शैतानी लगती है।
अत्यन्त सराहनीय रचना.
बहुत सुंदर .
बधाई .
भाई वाह। सुन्दर। चलिए इसी कड़ी में एक तुकबन्दी और सही-
कुछ भूलें तो ऐसी होती जिसकी है पहचान हमें।
और कुछ भूलें जीवन में एकदम अनजानी लगती है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
कुछ भूलों में आकर्षण था, कुछ भूलें कौतूहल थीं,
कुछ भूलों की दुनियाँ तो अब भी रुमानी लगती है।
बहुत अच्छी लगी कविता आपकी. स्वागत ब्लॉग परिवार और मेरे ब्लॉग पर भी.
कुछ भूलें चुपके से आकर चली गईं तब पता चला,
कुछ भूलों की आहट भी जानी पहचानी लगती है।.........
adbhut.................
umid hai aap likhe ki ye 'BHUL' nirantar jari rakhenge...........
aur hum padhne ki bhul Karte rahenge..........
किसी एक शेर को उठाकर टिपण्णी में चिपकाना बाकि शेरों के साथ अन्याय होता इसलिए....
बहुत खूबसूरत....नयापन लिए हुए एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई ||
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