बहुत सहज हो जाने के भी अपने ख़तरे हैं
लोग समझने लगते हैं हम गूँगे-बहरे हैं
होरी को क्या पता नहीं, उसकी बदहाली से
काले ग्रेनाइट पर कितने हर्फ़ सुनहरे हैं
धड़क नहीं पाता मेरा दिल तेरी धड़कन पर
मंदिर-मस्ज़िद-गुरुद्वारों के इतने पहरे हैं
पढ़-लिख कर मंत्री हो पाये, बिना पढ़े राजा
जाने कब से राजनीति के यही ककहरे हैं
निष्ठा को हर रोज़ परीक्षा देनी होती है
अविश्वास के घाव दिलों में इतने गहरे हैं
मैं रोया तो नहीं नम हुई हैं फिर भी आंखें
और किसी के आँसू इन पलकों पर ठहरे हैं
बौनो की आबादी में है कद पर पाबन्दी
उड़ने लायक सभी परिन्दो के पर कतरे हैं
अमित
सामुदायिक बिस्तर (कम्युनिटी बेड)
13 years ago
8 comments:
"बौनो की आबादी में है कद पर पाबन्दी
उड़ने लायक सभी परिन्दो के पर कतरे हैं"
इस अंतिम शेर ने तो खूब आनन्द दिया ! सलीके से कही गयी बात !
मैं रोया तो नहीं नम हुई हैं फिर भी आंखें
और किसी के आँसू इन पलकों पर ठहरे हैं
क्या बात है. आप बहुत अच्छा लिखते है ,,,,,,,,,,,
बहुत अच्छी गज़ल है.
निष्ठा को हर रोज़ परीक्षा देनी होती है
अविश्वास के घाव दिलों में इतने गहरे हैं
..सभी शेर बेहद उम्दा हैं.इस शेर ने मन मोह लिया.
धड़क नहीं पाता मेरा दिल तेरी धड़कन पर
मंदिर-मस्ज़िद-गुरुद्वारों के इतने पहरे हैं
निष्ठा को हर रोज़ परीक्षा देनी होती है
अविश्वास के घाव दिलों में इतने गहरे हैं
kya khuub hai ye
बौनो की आबादी में है कद पर पाबन्दी
उड़ने लायक सभी परिन्दो के पर कतरे हैं"
ye bhii bahut acchha hai amit ji
बौनो की आबादी में है कद पर पाबन्दी
उड़ने लायक सभी परिन्दो के पर कतरे हैं ..
ग़ज़ब का शेर है ... बहुत खूबसूरत ग़ज़ल .....
बहुत सहज हो जाने के भी अपने ख़तरे हैं
लोग समझने लगते हैं हम गूँगे-बहरे हैं
kya matla kaha hai kamaal
धड़क नहीं पाता मेरा दिल तेरी धड़कन पर
मंदिर-मस्ज़िद-गुरुद्वारों के इतने पहरे हैं
waah
निष्ठा को हर रोज़ परीक्षा देनी होती है
अविश्वास के घाव दिलों में इतने गहरे हैं
kamaal ka sher
बौनो की आबादी में है कद पर पाबन्दी
उड़ने लायक सभी परिन्दो के पर कतरे हैं
bahut hi sateek maqta
bahut khoobsurat gazal
मैं रोया तो नहीं नम हुई हैं फिर भी आंखें
और किसी के आँसू इन पलकों पर ठहरे हैं
ye sher bhi bahut pasand aaya
मत्ला से मकता तक एक शानदार गजल वाह भाई दिल खुश हो गया
मत्ला ने तो दिल लूट लिया
हार्दिक बधाई
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