एक मासूम से ख़त पर बवाल कितना था
उस हिमाकत का मुझे भी मलाल कितना था
मेरे हाथों पे उतर आई थी रंगत उसकी
सुर्ख़ चेहरे पे हया का गुलाल कितना था
मैं अगर हद से गुजर जाता तो मुज़रिम कहते
और बग़ावत का भी दिल में उबाल कितना था
काँच सा टूट गया कुछ मगर झनक न हुई
जुनूँ में भी हमें सबका ख़याल कितना था
हश्र यूँ मेरे सिवा जानता था हर कोई
मैं अपने हाल पे ख़ुद ही निहाल कितना था
आज भी एक पहेली है मेरे सिम्त 'अमित'
उस तबस्सुम की गिरह में सवाल कितना था
अमित
शब्दार्थ: मुक़द्दस हिलाल = पवित्र नया चाँद, तबस्सुम = मुस्कान
12 comments:
काँच सा टूट गया कुछ मगर झनक न हुई
जुनूँ में भी हमें सबका ख़याल कितना था
दिल खुश कर दित्ता जी :)
हश्र यूँ मेरे सिवा जानता था हर कोई
मैं अपने हाल पे ख़ुद ही निहाल कितना था
-क्या बात है, बहुत खूब!
काँच सा टूट गया कुछ मगर झनक न हुई
जुनूँ में भी हमें सबका ख़याल कितना था
हश्र यूँ मेरे सिवा जानता था हर कोई
मैं अपने हाल पे ख़ुद ही निहाल कितना था
आज भी एक पहेली है मेरे सिम्त 'अमित'
उस तबस्सुम की गिरह में सवाल कितना था
बहुत उम्दा शेर कहे हैं भाई .... बेहतरीन ग़ज़ल है.
उसकीसुर्ख़ चेहरे पे हया का गुलाल कितना था.nice
काँच सा टूट गया कुछ मगर झनक न हुई
जुनूँ में भी हमें सबका ख़याल कितना था
लाजवाब शेर ... बहुत कमाल की ग़ज़ल है ...
oh , poori bhee ho gayin yeh dono ghazalein aur hamein pata bhee n chala. Fir se aate hain... weekend tak. Abhi toh bus aupcharik waah waah se kaam chalaaeeye :)Jab gahrayii se padh lenge toh man se nikli baat kahenge...
आज भी एक पहेली है मेरे सिम्त 'अमित'
उस तबस्सुम की गिरह में सवाल कितना था
...वाह! मक्ते का यह शेर लाजवाब है.
मेरे हाथों पे उतर आई थी रंगत उसकी
सुर्ख़ चेहरे पे हया का गुलाल कितना था
ahaaaaaaaaaaa
मैं अगर हद से गुजर जाता तो मुज़रिम कहते
और बग़ावत का भी दिल में उबाल कितना था
काँच सा टूट गया कुछ मगर झनक न हुई
जुनूँ में भी हमें सबका ख़याल कितना था
bahut khoob
हश्र यूँ मेरे सिवा जानता था हर कोई
मैं अपने हाल पे ख़ुद ही निहाल कितना था
यूँ तो पूनम की चमके थी अगर्चे खिड़की से
झलक सा जाता मुक़द्दस हिलाल कितना था
waah waah
आज भी एक पहेली है मेरे सिम्त 'अमित'
उस तबस्सुम की गिरह में सवाल कितना था
bahut khoobsurat gazal
मेरे देखे, अब तक आपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक !
"आज भी एक पहेली है मेरे सिम्त 'अमित'
उस तबस्सुम की गिरह में सवाल कितना था"
मैं तो इस शेर पर ही लट्टू हुआ ! आभार ।
वाह दोस्त..कमाल है..
मेरा फ़ेव -
काँच सा टूट गया कुछ मगर झनक न हुई
जुनूँ में भी हमें सबका ख़याल कितना था
bahut khub.....
वाह जी बहुत सुंदर.
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