Tuesday, February 23, 2010

ग़ज़ल - एक मासूम से ख़त पर बवाल कितना था

एक मासूम से ख़त पर बवाल कितना था
उस हिमाकत का मुझे भी मलाल कितना था

मेरे हाथों पे उतर आई थी रंगत उसकी
सुर्ख़ चेहरे पे हया का गुलाल कितना था

मैं अगर हद से गुजर जाता तो मुज़रिम कहते
और बग़ावत का भी दिल में उबाल कितना था

काँच सा टूट गया कुछ मगर झनक न हुई
जुनूँ में भी हमें सबका ख़याल कितना था

हश्र यूँ मेरे सिवा जानता था हर कोई
मैं अपने हाल पे ख़ुद ही निहाल कितना था

आज भी एक पहेली है मेरे सिम्त 'अमित'
उस तबस्सुम की गिरह में सवाल कितना था

अमित
शब्दार्थ: मुक़द्दस हिलाल = पवित्र नया चाँद, तबस्सुम = मुस्कान

12 comments:

वीनस केसरी said...

काँच सा टूट गया कुछ मगर झनक न हुई
जुनूँ में भी हमें सबका ख़याल कितना था


दिल खुश कर दित्ता जी :)

Udan Tashtari said...

हश्र यूँ मेरे सिवा जानता था हर कोई
मैं अपने हाल पे ख़ुद ही निहाल कितना था

-क्या बात है, बहुत खूब!

अमिताभ मीत said...

काँच सा टूट गया कुछ मगर झनक न हुई
जुनूँ में भी हमें सबका ख़याल कितना था


हश्र यूँ मेरे सिवा जानता था हर कोई
मैं अपने हाल पे ख़ुद ही निहाल कितना था


आज भी एक पहेली है मेरे सिम्त 'अमित'
उस तबस्सुम की गिरह में सवाल कितना था

बहुत उम्दा शेर कहे हैं भाई .... बेहतरीन ग़ज़ल है.

Randhir Singh Suman said...

उसकीसुर्ख़ चेहरे पे हया का गुलाल कितना था.nice

दिगम्बर नासवा said...

काँच सा टूट गया कुछ मगर झनक न हुई
जुनूँ में भी हमें सबका ख़याल कितना था

लाजवाब शेर ... बहुत कमाल की ग़ज़ल है ...

Shar said...

oh , poori bhee ho gayin yeh dono ghazalein aur hamein pata bhee n chala. Fir se aate hain... weekend tak. Abhi toh bus aupcharik waah waah se kaam chalaaeeye :)Jab gahrayii se padh lenge toh man se nikli baat kahenge...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

आज भी एक पहेली है मेरे सिम्त 'अमित'
उस तबस्सुम की गिरह में सवाल कितना था
...वाह! मक्ते का यह शेर लाजवाब है.

श्रद्धा जैन said...

मेरे हाथों पे उतर आई थी रंगत उसकी
सुर्ख़ चेहरे पे हया का गुलाल कितना था

ahaaaaaaaaaaa

मैं अगर हद से गुजर जाता तो मुज़रिम कहते
और बग़ावत का भी दिल में उबाल कितना था


काँच सा टूट गया कुछ मगर झनक न हुई
जुनूँ में भी हमें सबका ख़याल कितना था

bahut khoob


हश्र यूँ मेरे सिवा जानता था हर कोई
मैं अपने हाल पे ख़ुद ही निहाल कितना था


यूँ तो पूनम की चमके थी अगर्चे खिड़की से
झलक सा जाता मुक़द्दस हिलाल कितना था

waah waah
आज भी एक पहेली है मेरे सिम्त 'अमित'
उस तबस्सुम की गिरह में सवाल कितना था

bahut khoobsurat gazal

Himanshu Pandey said...

मेरे देखे, अब तक आपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक !
"आज भी एक पहेली है मेरे सिम्त 'अमित'
उस तबस्सुम की गिरह में सवाल कितना था"
मैं तो इस शेर पर ही लट्टू हुआ ! आभार ।

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

वाह दोस्त..कमाल है..
मेरा फ़ेव -

काँच सा टूट गया कुछ मगर झनक न हुई
जुनूँ में भी हमें सबका ख़याल कितना था

kavita verma said...

bahut khub.....

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह जी बहुत सुंदर.