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झूठ का पर्दा खोला जाये
फिर, सच को भी तोला जाये
पीछे खुसुर-फुसुर से बेहतर
मुँह पर ही कुछ बोला जाये
धधक उठेगी आग वहाँ तक
जहाँ बात का शोला जाये
औरों की नीयत से पहले
खु़द को चलो टटोला जाये
धूप हक़ीक़त की पड़ते ही
पिघल मोम सा चोला जाये
सीले बारूदों से कैसे
इंकिलाब का गोला जाये
पब्लिक को पैदल करके वो
चढ़ कर उड़नखटोला जाये
मुखिया कैसा, अपने दम पर
जिससे चला न डोला जाये
ताक़त दिखलाने का नुस्ख़ा
ज़हर फ़ज़ा में घोला जाये
चढ़ती - गिरती हैं उम्मीदें
जैसे कोई हिंडोला जाये
'अमित' क्रोध और लाचारी से
दिल पर निकल फफोला जाये
-- अमित
शब्दार्थ: फ़ज़ा = माहौल, वातावरण।
(चित्र: गूगल से साभार)
7 comments:
बेहतरीन ग़ज़ल है भाई ...
चढ़ती - गिरती हैं उम्मीदें
जैसे कोई हिंडोला जाये
क्या बात है !!!
आनन्द आ गया. बहुत बढ़िया.
"पीछे खुसुर-फुसुर से बेहतर
मुँह पर ही कुछ बोला जाये"
- aabhar
पब्लिक को पैदल करके वो
चढ़ कर उड़नखटोला जाये
"औरों की नीयत से पहले
खु़द को चलो टटोला जाये"
बिलकुल सच्ची बात ! पहले अपनी खबर लेनी जरूरी है । आभार ।
बहुत ख़ूब!
sundar ..
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