वो भी मग़रूर और तना सा था
कुछ शरायत दरख़्त ने रख दीं
वरना साया बहुत घना सा था
साक़िये-कमनिगाह से अर्ज़ी
जैसे पत्थर को पूजना सा था
ख़ूब दमसाज़ थी ख़ुशबू लेकिन
साँस लेना वहाँ मना सा था
दर्द से यूँ तो नया नहीं था 'अमित'
अज़नबी अबके आश्ना सा था
अमित
शब्दार्थ:
शरायत = शर्त का बहुवचन, साक़िये-कमनिगाह = पक्षपात करने वाला साक़ी, दमसाज़ = प्राणदायक,
तअर्रुफ़ = परिचय, आश्ना = परिचित
शरायत = शर्त का बहुवचन, साक़िये-कमनिगाह = पक्षपात करने वाला साक़ी, दमसाज़ = प्राणदायक,
तअर्रुफ़ = परिचय, आश्ना = परिचित
1 comment:
"खूब बहुत खूब...."
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