Tuesday, July 13, 2010

ग़ज़ल - अब ’अमित’ अन्जुमन से जाते हैं






















बाइसे-शौक आजमाते हैं
कितने मज़बूत अपने नाते हैं

रोज़ कश्ती सवाँरता हूँ मैं
कुछ नये छेद हो ही जाते हैं

बाकलमख़ुद बयान था मेरा
अब हवाले कहीं से आते हैं

जिनपे था सख़्त ऐतराज़ उन्हे
उन्हीं नग़्मों को गुनगुनाते हैं

शम्मये-बज़्म ने रुख़ मोड़ लिया
अब ’अमित’ अन्जुमन से जाते हैं


'अमित' 
बाइसे-शौक = शौक के लिये,

3 comments:

पवन धीमान said...

.. बहुत सुंदर !!!

अमिताभ मीत said...

बाकलमख़ुद बयान था मेरा
अब हवाले कहीं से आते हैं

Bahut khoob. Umda sher. Umda ghazal.

श्रद्धा जैन said...

sabhi sher aur maqta bhi bahut khoob raha

magar matle ne dil loot liya