Saturday, August 8, 2020

ग़ज़ल - मेरे वुजूद में जो शख़्स समाया सा लगे

मेरे वुजूद में जो शख़्स समाया सा लगे
बहुत अज़ीज है फिर भी वो पराया सा लगे
वो सुनाता है तो हर बात नई लगती है
मेरा बयान नया भी, तो सुनाया सा लगे
बेवफ़ाई में कभी उसका कुछ कुसूर नहीं
मेरी वफ़ा का हवाला भी बनाया सा लगे
ऐसे वादें हैं के सदमों से गुजर जाते हैं
मेरा तोड़ा सा लगे उसका निभाया सा लगे
आँसुओं से ही धुले दोनो ही चेहरे लेकिन
मेरा रोया सा लगे उसका रुलाया सा लगे

-अमित

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