Saturday, August 8, 2020

गीत - तुम्हें कैसे बताऊँ...

 

तुम्हें कैसे बताऊँ
तुम मेरे मन के विवर में
विचरती रागिनी सी हो
तुम्हें कैसे बताऊँ

प्रलचय के बाद जब निर्जन भुवन में
लगे थे आदि मनु एकल यजन में
अप्रत्याशित तभी जैसे
मिली कामायनी सी हो।
तुम्हें कैसे बताऊँ।

मधुर विश्रांति के कोमल पलों में
छुअन स्नेहिल छिपाए अंचलों में
गगन से उतर कर आई हुई
मधुयामिनी सी हो
तुम्हें कैसे बताऊँ

झुलसता तन कभी अन्तः करण भी
डगमगाता कभी जब आचरण भी
जगत के तप्त वन में तुम
शरद की चाँदनी सी हो
तुम्हें कैसे बताऊँ

मुझे नैराश्य जब भी घेरता है
समय अनुकूल भी मुँह फेरता है
मरण के तुल्य पल में तुम
सहज संजीवनी सी हो
तुम्हें कैसे बताऊँ।

- अमित 

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