हे मानस के हंस तुम्हारा वंदन।
गलित रूढियों के दल-दल में
डूबा था जग सारा
मानस का उपहार ललित देकर
तब हमे उबारा
लोकनीति, मर्यादा रक्षण
काटे जो भवबन्धन
हे मानस के हंस तुम्हारा वंदन।
विनययुक्त दी विनयपत्रिका
गीतावलि प्रभुलीला
पूर्वपीठिका मानस की ज्यौं
कवितावली सुशीला
स्वयं तिलक लगवाने आये थे
तुमसे रघुनन्दन
हे मानस के हंस तुम्हारा वंदन।
रामचरित लीला का तुमने
प्रचलन किया जगत में
शैव और वैष्णव भक्तों को
किया एक पंगत में
उपकृत आज समाज तुम्हारा
करता है अभिनन्दन
हे मानस के हंस तुम्हारा वंदन।
गूढ़ दार्शनिक तत्वों को
जब सरल शब्द में ढाला
इक भदेस भाषा ने पाया
अमृतरस का प्याला
घूम रहा है धर्मध्वजा लेकर
अब तक वह स्यंदन
हे मानस के हंस तुम्हारा वंदन।
माता-पिता विहीन, तिरष्कृत
बाल्यकाल कठिनाई
गुरु का कृपा प्रसाद, ज्ञान के
साथ काव्य निपुनाई
जिसे किया स्पर्श
सुवासित हुआ कि जैसे चंदन
हे मानस के हंस तुम्हारा वंदन।
सामुदायिक बिस्तर (कम्युनिटी बेड)
13 years ago
4 comments:
अति सुन्दर.
चिट्ठा चर्चा से आया यहाँ । तुलसी जयंती पर तुलसी-स्मरण का आभार । उत्कृष्ठ रचना । यहाँ भी देखें - सच्चा शरणम्: तुम्हारी याद आती है चले आओ, चले आओ (तुलसी जयंती पर तुलसी-स्मरण )
this is saswat satya om
OM ME HE SHAKTI ,OM ME HE BHAKTI, OM ME HE SARA SANSAR,
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