Monday, December 7, 2009

अपौरुषेय

शब्द स्वयं चुनते हैं, अपनी राह
बैसाखियों पर टिके शब्द
हो जाते हैं धराशायी
बैसाखियों के टूटते ही|
बहुत पाले और संवारे हुये शब्द भी
गल जाते हैं, समय की आंच में
जीवित रह जाते हैं वे शब्द
जिन्होने
छुआ हो जीवन को
बहुत समीप से
इन्ही में से कुछ
हो जाते हैं
शब्दकार से स्वतन्त्र
और उनसे भी बड़े
अतिक्रमण करके काल का
यही कालजयी
हो जाते हैं
अपौरुषेय!

-अमित  

2 comments:

निर्मला कपिला said...

जीवित रह जाते हैं वे शब्द
जिन्होने
छुआ हो जीवन को
बहुत समीप से
बिलकुल सही कहा। एक अच्छे शब्दशिल्पी की कलम बता रही है कि जीवन मे सुन्दर को सहेज रखा है उसने । बहुत सुन्दर रचना है शुभकामनायें

Kusum Thakur said...

"जीवित रह जाते हैं वे शब्द
जिन्होने
छुआ हो जीवन को
बहुत समीप से "

बिल्कुल सच कहा है , बहुत सुन्दर पंक्तियाँ !!