Sunday, January 10, 2010

ग़ज़ल - हालात से इस तरह परेशान हुये लोग

हालात से इस तरह परेशान हुये लोग
तंग आके अपने आप ही इंसान हुये लोग

जो थे खु़दी पसन्द उन्हे फ़िक्रे-ख़ुदा थी
जो थे खु़दा पसन्द वो हैवान हुये लोग

जिस खूँ से जिस्मो-जाँ में हरारत जुनूँ की थी
वो बह गया सड़क पे तो हैरान हुये लोग

ईमान फ़क़त हर्फ़े-तवारीख़ रह गया
इस दौर में इस क़दर बेईमान हुये लोग

अब दर्द के रिस्तों का जिक्र क्या करें 'अमित'
बस अपनी जान के लिये बेजान हुये लोग


अमित (१९८८)
पहला शेर एक खुश-फ़हम भविष्य कथन (Prophesy) है।
खु़दी पसन्द = अह्म ब्रह्मास्मि (अन-अल-हक़) के तरफ़दार, फ़िक्रे-ख़ुदा = ईश्वर का ध्यान, खु़दा पसन्द =   वाह्याचारी, जिस्मो-जाँ = शरीर और प्राण, हरारत = गर्मी, जुनूँ = जुनून, हर्फ़े-तवारीख़ = इतिहास का शब्द।


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रचनाधर्मिता (http://amitabhald.blogspot.com)

4 comments:

Udan Tashtari said...

जिस खूँ से जिस्मो-जाँ में हरारत जुनूँ की थी
वो बह गया सड़क पे तो हैरान हुये लोग

-बहुत खूब!!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

अब दर्द के रिस्तों का जिक्र क्या करें 'अमित'
बस अपनी जान के लिये बेजान हुये लोग


Bahut khub ukera hai gazal me...

दिगम्बर नासवा said...

जिस खूँ से जिस्मो-जाँ में हरारत जुनूँ की थी
वो बह गया सड़क पे तो हैरान हुये लोग ..

बहुत ही खूबसूरत शेर है ........ सारी ग़ज़ल कमाल की है ........

देवेन्द्र पाण्डेय said...

जो थे खु़दी पसन्द उन्हे फ़िक्रे-ख़ुदा थी
जो थे खु़दा पसन्द वो हैवान हुये लोग
...वाह!