Sunday, March 7, 2010

गज़ल - थोड़े मतभेद हो गये


थोड़े मतभेद हो गये
निष्ठा में छेद हो गये

रक्त-संग रक्त थे मगर
निकले तो स्वेद हो गये

आई जब इश्क़ की समझ
बाल ही सफ़ेद हो गये

अनपढ़ के अटपटे वचन
समझा तो वेद हो गये

ऐसा कुछ हो गया 'अमित'
अपने ही खेद हो गये



अमित

7 comments:

पारुल "पुखराज" said...

थोड़े मतभेद हो गये
निष्ठा में छेद हो गये
:)

वीनस केसरी said...
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Himanshu Pandey said...

"आई जब इश्क़ की समझ
बाल ही सफ़ेद हो गये"
तो क्या हुआ ! समझ आ तो गयी ! जब जागो तभी सवेरा ! आभार ।

वीनस केसरी said...

बहुत सुन्दर गजल
ये शेर खास पसंद आया

आई जब इश्क़ की समझ
बाल ही सफ़ेद हो गये


वीनस

देवेन्द्र पाण्डेय said...
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देवेन्द्र पाण्डेय said...

छोटे बहर की प्रेरक गज़ल.

Amitraghat said...

बेहतरीन......
amitraghat.blogspot.com