Wednesday, May 26, 2010

ग़ज़ल - सहल इस तरह ज़िन्दगी कर दे

सहल इस तरह ज़िन्दगी कर दे
मुझपे एहसाने-बेख़ुदी कर दे

आरज़ू ये नहीं कि यूँ होता
आरज़ू है कि बस यही कर दे

हिज़्र की आग से तो बेहतर है
ये मुलाक़ात आख़िरी कर दे

ऐ नुजूमी जरा सितारों पर
हो सके थोड़ी रोशनी कर दे

दास्ताने-सफ़र 'अमित' शायद
उनकी आँखे भी शबनमी कर दे

'अमित'
नुजूमी = ज्योतिषी

9 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

bahut suner gazal hai

स्वप्निल तिवारी said...

bhai behad badhiya ghazal hui hai ...
\

आरज़ू ये नहीं कि यूँ होता
आरज़ू है कि बस यही कर दे

ye sher to bas mera fav hua

वीनस केसरी said...

आरज़ू ये नहीं कि यूँ होता
आरज़ू है कि बस यही कर दे

ऐ नुजूमी जरा सितारों पर
हो सके थोड़ी रोशनी कर दे

अमित जी ये दो शेर तो ....

बस.............. लाजवाब

anurag tripathi said...

हिज़्र की आग से तो बेहतर है
ये मुलाक़ात आख़िरी कर दे


ye panktiyn samajhne me thodi pareshani ho rahi hai cahchaji..

अमिताभ त्रिपाठी ’ अमित’ said...

@anurag
अभी तुम्हारी समझ मे नहीं आयेगा। वैसे हिज़्र का मतलब होता है वियोग। अब शायद समझ सको।

पारुल "पुखराज" said...

badhiya ghazal amit ji...ARZUU YE NAHI KI YUN HOTA...bahut khuub

श्रद्धा जैन said...

आरज़ू ये नहीं कि यूँ होता
आरज़ू है कि बस यही कर दे

waah kya baat kahi hai

anurag tripathi said...

haan ab sahi hai ,samajh me aa gaya.

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

आरज़ू ये नहीं कि यूँ होता
आरज़ू है कि बस यही कर दे

...कबूल हो दुआ ये, दुआ है।

हिज़्र की आग से तो बेहतर है
ये मुलाक़ात आख़िरी कर दे

दर्द...!

बधाई, अच्छी गज़ल।