संगम क्षेत्र को देख कर एक सवैया फूट पड़ा।
मत्तगयन्द सवैया में सात भगण (ऽ। ।) और और अन्त में दो गुरु होते हैं।
भानुसुता इस ओर बहे, उस ओर रमापति की पगदासी।
साधक सिद्ध सुजान जहाँ, रहते भर मास प्रयाग प्रवासी।
संगम तीर जुटे जब भीर, लगे जन वारिधि की उपमा सी।
धन्य हुआ यह जीवन जो, इस पुण्य धरा का हुआ अधिवासी।
अमित
सामुदायिक बिस्तर (कम्युनिटी बेड)
13 years ago
3 comments:
वाह वाह और वाह...
सुबह सुबह आनंद आ गया मत्तगयंद की मस्त गति देख कर।
बहुत खूब। बधाई इस बेहतरीन रचना के लिए। भाव तो उत्कृष्ट हैं ही, छंदसिद्धि से मन प्रसन्न है। मैं दिल से छंदबद्ध कविता का हामी हूं।
कमाल की रवानी है इस रचना में . मस्ती भरी ..... मज़ा आ गया .......
waah Amith ji
aapki kalam mein jaadu hai
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